Skip to main content

मलिक मुहम्मद जायसी की जीवनी

                मलिक मुहम्मद जायसी  

"भक्तिकालीन निर्गुण धारा की प्रेममार्गी शाखा के अग्रगण्य तथा प्रतिनिधि कवि मलिक मुहम्मद जायसी ने मुसलमान होकर भी हिन्दुओं की कहानियाँ हिन्दुओं की ही बोली में पूरी सहृदयता से कहकर उनके जीवन में मर्मस्पर्शिनी अवस्थाओं के साथ अपने उदार हृदय का पूर्ण सामञ्जस्य दिखा दिया। कबीर ने केवल भिन्न प्रतीत होती हुई परोक्ष सत्ता का आभास दिया था। प्रत्यक्ष जीवन की एकता का दृश्य सामने रखने की आवश्यकता बनी थी, वह जायसी के द्वारा पूर्ण हुई।" जायसी के जन्म के सम्बन्ध में अनेक मत हैं। इनकी रचनाओं से जो मत उभरकर सामने आता है, उसके अनुसार आयसी का जन्म सन् 1492 ई0 के लगभग रायबरेली जिले के 'जायस' नामक स्थान में हुआ था। ये स्वयं कहते हैं- 'जायस नगर मोर अस्थान।' जायस के निवासी होने के कारण ही ये जायसी कहलाये। 'मलिक' जायसी को वंश- परम्परा से प्राप्त उपाधि थी और इनका नाम केवल मुहम्मद था। इस प्रकार इनका प्रचलित नाम मलिक मुहम्मद जायसी बना। बाल्यकाल में ही जायसी के माता-पिता का स्वर्गवास हो जाने के कारण शिक्षा का कोई उचित प्रबन्ध न हो सका। सात वर्ष की आयु में ही चेचक से इनका एक कान और एक आँख नष्ट हो गयी थी। ये काले और कुरूप तो थे ही, एक बार बादशाह शेरशाह इन्हें देखकर हँसने लगे। तब जायसी ने कहा 'मोहिका हँसेसि, कि कोहरहिं?' इस बार बादशाह बहुत लज्जित हुए। जायसी एक गृहस्थ के रूप में भी रहे। इनका विवाह भी हुआ था तथा पुत्र भी थे। परन्तु पुत्रों की असामयिक मृत्यु से इनके हृदय में वैराग्य का जन्म हुआ। बाद में जायस अमेठी में रहने लगे थे और वहीं सन् 1542 ई0 में इनकी मृत्यु हुई थी। कहा जाता है कि जायसी के आशीर्वाद से जब से अमेठी नरेश के यहाँ पुत्र का जन्म हुआ तबसे उनका अमेठी के राजवंश में बड़ा सम्मान था। प्रचलित है कि जीवन के अन्तिम दिनों में ये अमेठी से कुछ दूर मॅगरा नाम के वन में साधना किया करते थे। वहीं किसी के द्वारा शेर की आवाज के धोखे में इन्हें गोली मार देने से इनका देहान्त हो गया • • • • • • था। कवि-एक संक्षिप्त परिचय • जन्म सन् 1492 ई०। जन्म-स्थान-जायसनगर, रायबरेली (उ.प्र.) • पिता का नाम शेख ममरेज। प्रमुख काव्य-ग्रन्थ- पद्मावत अखरावट, आखिरी कलाम। • भाषा-अवधी। • शैली-प्रबन्ध। शिक्षा-साधु-सत्तों की संगति में वेदान्त, ज्योतिष, दर्शन, रसायन तथा हठयोग का पर्याप्त ज्ञान। उपलब्धि-हिन्दी सूफी काव्य परंपरा के प्रवर्तक। मृत्यु-सन् 1542 ई०। साहित्य में स्थान-जायसी सूफी काव्य परंपरा के सर्वश्रेष्ठ कवि काव्य \\ 149 'प‌द्मावत', 'अखरावट', 'आखिरी कलाम', 'चित्ररेखा' आदि जायसी की प्रसिद्ध रचनाएँ हैं। इनमें 'पद्मावत' सर्वोत्कृष्ट है और वही जायसी की अक्षय कीर्ति का आधार है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के अनुसार इस ग्रन्थ का प्रारम्भ 1520 ई० में हुआ था और समाप्ति 1540 ई० में। जायसी ने 'प‌द्मावत' में चित्तौड़ के राजा रत्नसेन और सिंहलद्वीप की राजकुमारी प‌द्मावती की प्रेमकथा का अत्यन्त मार्मिक वर्णन किया है। एक ओर इतिहास और कल्पना के सुन्दर संयोग से यह एक उत्कृष्ट प्रेम-गाया है और दूसरी ओर इसमें आध्यात्मिक प्रेम की भी अत्यन्त भावमयी अभिव्यंजना है। अखरावट में वर्णमाला के एक- एक अक्षर को लेकर दर्शन एवं सिद्धान्त सम्बन्धी बातें चौपाइयों में कही गयी हैं। इसमें ईश्वर, जीव, सृष्टि आदि से सम्बन्धित वर्णन हैं। आखिरी कलाम में मृत्यु के बाद प्राणी की दशा का वर्णन है। चित्ररेखा में चन्द्रपुर की राजकुमारी चित्ररेखा तथा कन्नौज के राजकुमार प्रीतम कुँवर के प्रेम की गाथा वर्णित है। जायसी का विरह-वर्णन अत्यन्त विशद एवं मर्मस्पर्शी है। 'षड्‌ऋतु वर्णन' और 'बारहमासा' जायसी के संयोग एवं विरह वर्णन के अत्यन्त मार्मिक स्थल हैं। जायसी रहस्यवादी कवि हैं और इनके रहस्यवाद की सबसे बड़ी विशेषता उसकी प्रेममूलक भावना है। इन्होंने ईश्वर और जीव के पारस्परिक प्रेम की व्यंजना दाम्पत्य-भाव के रूप में की है। रत्नसेन जीव है तया प‌द्मावती परमात्मा। यह सूफी पद्धति है। 'पद्मावत' में पुरुष (रत्नसेन) प्रियतमा (प‌द्मावती) की खोज में निकलता है। जायसी ने इस प्रेम की अनुभूति की व्यंजना रूपक के आवरण में की है। इन्होंने साधनात्मक रहस्यवाद का चित्रण भी किया है, जिसकी प्रधानता कबीर में दिखायी देती है। जायसी ने सम्पूर्ण प्रकृति में प‌द्मावती के सौन्दर्य को देखा है तथा प्रकृति की प्रत्येक वस्तु को उस परम सौन्दर्य की प्राप्ति के लिए आतुर और प्रयत्नशील दिखाया है। यह प्रकृति का रहस्यवाद कहलाता है। जायसी की भाँति कबीर में हमें यह भावात्मक प्रकृतिमूलक रहस्यवाद देखने को नहीं मिलता। जायसी का भाव-पक्ष बहुत समृद्ध है, परन्तु इनका कला-पक्ष और भी अधिक श्रेष्ठ है। कला-पक्ष के अन्तर्गत भाषा, अलङ्कार, छन्द आदि का महत्त्व है। इनकी भाषा अवधी है। उसमें बोलचाल की लोकभाषा का उत्कृष्ट भावाभिव्यंजक रूप देखा जा सकता है। लोकोक्तियों के प्रयोग से उसमें प्राणप्रतिष्ठा हुई है। अलङ्कारों का प्रयोग अत्यन्त स्वाभाविक है। केवल चमत्कारपूर्ण कथन की प्रवृत्ति जायसी में नहीं है। मसनवी शैली में लिखे 'प‌द्मावत' में प्रबन्ध काव्योचित सौष्ठव विद्यमान है। दोहा और चौपाई जायसी के प्रधान छन्द हैं। 'पद्मावत' की भाषा की प्रशंसा करते हुए डॉ० वासुदेवशरण अग्रवाल ने कहा था- "जायसी की अवधी भाषाशास्त्रियों के लिए स्वर्ग है, जहाँ उनकी रुचि की अपरिमित सामग्री सुरक्षित है। मैथिली के लिए जो स्थान विद्यापति का है। मराठी के लिए जो महत्त्व ज्ञानेश्वरी का है, वही महत्त्व अवधी के लिए जायसी की भाषा का है।” ...हैं। इन्होंने अपने काव्य में प्रबन्ध शैली का प्रयोग किया है।

Comments

Popular posts from this blog

अस्थि-विकृति या रिकेट्स (Rickets) किस विटामिन की कमी से होता है

 • 2. विटामिन 'D' की कमी से उत्पन्न रोग  (Diseases Treatment due to Deficiency of Vitamin D)  विटामिन D की पर्याप्त मात्रा   है, अन्यथा हमें विभिन्न प्रकार की शारीरिक व्याधियों का सामना करना पड़ता है.                                                                                                   जैसे अस्थि-विकृति की  गभीर बीमारी माना गया है। विटामिन D की उपस्थिति में फास्फोरसत और कैल्शियम खनिजों का सरलतापूर्वक शोषण होता है, जबकि इसकी अनुपस्थिति में 1 अवशोषण ठीक विधि से नहीं हो पाता और शरीर रोगी हो जाता है। विटामिन D की कमी से उत्पन्न रोगों में अस्थि विकृति या रिकेट्स और आस्टीमलेशिया या मृदुत्लास्थि अति प्रमुख माने गये हैं।                                                                                                                                                         इन रोगों का संक्षिर वर्णन और उपचार निम्नवत् प्रस्तुत है -                                                                                       (1) अस्थि-विकृति या रिकेट्स (Rickets) विटामिन D की कमी से उत्पन

शराब पीने वाले देखे किस शराब में कितना होता है एल्कोहल

                     प्रूफ स्प्रिट (Proof spirit) -  (i) शराबों की तीव्रता (ऐल्कोहॉल %) व्यक्त करने के लिए एक मानक की आवश्यकता होती है, क्योंकि शराब पर कर-निर्धारण उसके ऐल्कोहॉल % के आधार पर होता  है।                                                                                             पेय (Alcoholic beverages) - ये दो प्रकार के होते (i) 1)असुत(Distilled) - अनासुत ऐल्कोहॉलों को आसवित करके प्राप्त होते हैं। इनमें 35-50% एथिल ऐल्कोहॉल होता है।                                                                          कुछ शराबों में ऐल्कोहॉल % निम्नलिखित है-                ब्रान्डी (Brandy) अंगूर 40-50%                                       रम। (Rum) शीरा 40-55%                                           जिन (Gin) मक्का 35-40%                                                                                                            (ii) अनासुत (Undistilled) - इसमें 3-25% ऐल्कोहॉल होता है। करने इनके कुछ उदाहरण निम्नलिखित हैं।                                                             

CHIKUNGUNYA किस मच्छर से फैलता है ।और इसके क्या लक्षण है

                              (CHIKUNGUNYA) परिचय (Introduction) चिकनगुनिया विषाणु एक अर्बोविषाणु है जो अल्फा विषाणु (alpha virus) परिवार के अन्तर्गत सम्मिलित है। मानव में इसका प्रवेश एडिस (Aedes) मच्छर के काटने से होता है। यह विषाणु डेंगू रोग के समकक्ष लक्षण वाली बीमारी पैदा करता है। चिकनगुनिया रोग को अफ्रीकन भाषा से लिया गया है, इसका तात्पर्य है जो झुका दें।  एडिस (Aedes) मच्छर मानव शरीर में चिकनगुनिया विषाणु के प्रवेश करने के पश्चात 2 से 4 दिन के बाद इस रोग के लक्षण दर्शित होते हैं। इस रोग के लक्षणों में 39°C (102.2°F) तक का ज्वर हो जाता है। धड़, फिर हाथों और पैरों पर लाल रंग के चकत्ते बन जाते हैं। शरीर के सभी जोड़ों (joints) में असहनीय पीड़ा होती है। रोग के ठीक होने के पश्चात् भी लगभग 1 महीने तक शरीर में दर्द की शिकायत     बनी रहतीहै।                                                                 लक्षण(1)सर्दी के साथ तेज बुखार आना।                            2. सिर दर्द होना।                                                      3. मांसपेशियों में दर्द हेना।