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महाराजा छत्रसाल

                                   छत्रसाल


छत्रसाल के उन गिने-चुने महापुरुषों में हैं जिन्होंने अपने बल, बु‌द्धि तथा परिश्रम से बहुत साधारण स्थिति में अपने को बहुत बड़ा बना लिया। छत्रसाल के पिता का नाम चम्पतराय था। उनका जीवन सदा रणक्षेत्र में ही बीता। उनकी रानी भी सदा उनके साथ लड़ाई के मैदान में जाती थीं। उन दिनों रानियाँ बहुधा अपने पति के साथ रण में जाती थीं और उनका उत्साहवर्द्धन करती थीं। जब छत्रसाल अपनी माता के गर्भ में थे तब भी उनकी माता चम्पतराय के साथ रणक्षेत्र में ही थीं। चारों तरफ तलवारों की खनखनाहट और गोलियों की वर्षा हो रही थी। ऐसे ही वातावरण में छत्रसाल का जन्म एक पहाडी गाँव में सन् 1649 ई० में हुआ। उनके पिता चम्पतराय ने सोचा कि इस प्रकार के जीवन में छत्रसाल को अपने पास रखना ठीक नहीं है। रानी छत्रसाल को लेकर नेहर चली गई। चार साल तक छत्रसाल वहीं रहे। उसके बाद पिता के पास आए। बचपन से ही छत्रसाल बडे साहसी और निर्भीक थे। इनके खिलौनों में असली तलवार भी थी। इनके खेल भी रण के खेल होते थे। प्रायः सभी लोग कहते थे कि वे अपने जीवन में पराक्रमी और साहसी पुरुष होंगे। इनके गुणों के कारण ही इनका नाम छत्रसाल रखा गया। इसके अतिरिक्त आचार-व्यवहार के गुण भी इनमें बालपन से ही थे। इन्हें बाल्यकाल में चित्र बनाने का बहुत शौक था। ये हाथी, घोड़े, तोप और बन्दूक-सवार सैनिक का चित्र बनाया करते थे। रामायण तथा महाभारत की कथा जब होती तो बड़े मन से सुनते थे। सातवें वर्ष से इनकी शिक्षा नियमित ढंग से आरम्भ हुई। उस समय वे अपने मामा के यहाँ रहते थे। पुस्तकों की शिक्षा के साथ-साथ सैनिक शिक्षा भी इन्हें दी जाती थी। दस वर्ष की अवस्था में ही छत्रसाल अस्त्र-शस्त्र को कुशलता से चलाना सीख गए थे। हिन्दी कविता तथा अनेक धार्मिक पुस्तकें इन्होंने पढ़ लीं थीं। केशवदास कृत राम चन्द्रिका' इन्हें बहुत प्रिय थी। छत्रसाल की अवस्था लगभग सोलह वर्ष की थी, जब इनके माता-पिता की मृत्यु हो गयी। छत्रसाल उस समय बहुत दुःखी हुए किंतु उन्होंने धैर्यपूर्वक अपने आपको सँभाला और भविष्य के सम्बन्ध में सोचने लगे। छत्रसाल की अवस्था इस समय विचित्र थी। सारी जागीर छिन चुकी थी। इनके पास न सेना थी न पैसे थे। इन्होंने भविष्य का चित्र अपने मन में बना लिया और अपने काका के यहाँ चले गए। वहाँ कुछ दिन रहने के पश्चात् इन्होंने अपनी योजना अपने काका को बतायी। युद्ध की बात सुनकर इनके काका बहुत part 2 comment kro bna duga

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