Skip to main content

विटामिन B1 अथवा थायमिन


(Vitamin B1 or Thymin) थायमिन या विटामिन B1 की खोज बेरी-बेरी रोग के कारणों की खोज के संदर्भ में हुई थी। सन् 1880 में पूर्वी देशों में जापान के डा० तकाकी ने जापानी सैनिकों में व्याप्त वेरी-बेरी रोग के कारणों की खोज करते समय इस विटामिन का खोज कार्यारम्भ किया था. तत्पश्चात् सन् 1897 में आइखमैन और सन् 1911 में फन्क ने भी इस दिशा में महत्वपूर्ण कार्य किये। फन्क ने चावल की ऊपरी पर्त के रवे (Crystal) के रूप में एक तत्व प्राप्त किया, जो पक्षियों में पाई जाने वाली बेरी-बेरी नामक बीमारी की अचूक दवा सिद्ध हुई।                    कलान्तर में ऑसबर्न, मेण्डल, मैकालम एवं डेविश द्वारा विटामिन A की खोज के बाद चावल की भूसी से निकाले गये। इसी पदार्थ को विटामिन B का नाम प्रदान किया गाय। सन् 1935 में विलियम्स ने विटामिन B1 की रासायनिक संरचना को ज्ञात करके यह बताया कि इसमे थायोजाल समूह भी उपस्थित है, जिससे इसका वैकल्पिक नाम थायमिन पड गया।                                                                                                                                                                 थायमिन के गुण. - यह एक रासायनिक यौगिक है, जिसमें कार्बन, हाइड्रोजन, आक्सीजन, नाइट्रोजन, सरफर तथा क्लोरीन पाया जाता है। यह जल में घुलनशील. स्वाद में विज्ञान नमकीन, खमीर की तरह गन्धयुक्त, रंगहीन तथा रवेदार पदार्थ है। थायमिन नामक यह विटामिन अम्लीय घोल में स्थिर है, तथापि क्षारीय घोल में ताप द्वारा नष्ट हो जाता है। तांबे के बर्तन में पकाने से यह विटामिन नष्ट हो जाता है, जबकि अन्य किसी धातु के बर्तनों में नष्ट नहीं होता । यह विटामिन अल्ट्रावायलेट किरणों के प्रभाव से भी नष्ट हो जाता है                  4. प्राप्ति के स्रोत- (Sources) - थायमिन अथवा विटामिन B1, गेहूं चावल की ऊपरी पर्त (Bran), अकुर निकले हुए धान्यों, गेहूं की दलिया, मूंगफली, हरी मटर, सन्तरे के रस, सभी प्रकार के फलों, दूध, खमीर, यकृत, सुअर के मांस, नारियल, अंडे तथा हरी सब्जियों आदि में प्रचुर मात्रा में निहित होता है जबकि दूध में यह बहुत कम मात्रा में पाया जाता है। यह विटामिन वसा, तेल और शर्करा को छोड़कर लगभग सभी खाद्य पदार्थों में न्यूनाधिक मात्रा में पाया जाता है। दैनिक आवश्यकता (Daily Requirement) विटामिन B1 या थायमिन की हैल्थ आर्गेनाइजेशन ने सन् 1963 में अपनी एक विज्ञप्ति में बताया है कि 4 मिलीग्राम थायमिन ग्रहण करने से 1000 कैलोरी ऊर्जा प्राप्त होती है, जबकि 1.2 मिलीग्राम से लगभग 300 कैलोरी प्राप्त होती है। • दैनिक मात्रा अलग-अलग व्यक्तियों को पृथक-पृथक मात्रा में आवश्यक होतीहैअंतर्राष्ट्री.        थायमिन के कार्य (1) विटामिन B1 अथवा थायमिन कार्बोज के चयापचयन में महत्वपूर्ण योगदान करता है क्योकि इस प्रक्रिया में थायमिन एक उत्प्रेरक के रूप में क्रियाशील रहता है।                                                          (2) थायमिन तत्रिका तंत्र के संचालन में भी योगदान करता है। थायमिन की न्यूनता से पैर की मासपेशियों में खिंचाव उत्पन्न होता है, आंखों के आगे अन्धेरा छाने लगता है, सिर में चक्कर आने लगते हैं, कब्जियत हो जाती है तथा कानों में भनभनाहट सी उत्पन्न हो जाती है।                               (3) थायमिन की कमी से शारीरिक वृद्धि और विकास अवरुद्ध हो जाता है, इसलिए इसे शारीरिक वृद्धि हेतु नितान्तावश्यक माना गया है।            (4) इसकी कमी से बेरी-बेरी नामक रोग हो जाता है।                (5) थायमिन के अभाव में राइबोफ्लेविन के संग्रह में कमी हो जाती है।                                                                                     (6) विटामिन B₁ व्यक्ति भूख में वृद्धि करता है।            7. थायमिन की कमी के दुष्परिणाम (1) इसकी कमी उत्पन्न होता है, जिसमें यदा-कदा रोगी की मृत्यु तक हो जाती है। से व्यक्ति में बेरी-बेरी रोग (2) इसकी कमी से राइबोफ्लेविन का पर्याप्त संग्रह नहीं हो पाता है। (3) इसकी कमी से व्यक्ति की भूख कम हो जाती है तथा वह दुर्बल हो जाता है। (4) इसकी कमी से व्यक्ति की शारीरिक वृद्धि रुक जाती है। (5) इसकी कमी से अस्थिर हो जाती है। चिड़चिड़ा और झगड़ालू हो जाता है और उसकी प्रकृति             

Comments

Popular posts from this blog

अस्थि-विकृति या रिकेट्स (Rickets) किस विटामिन की कमी से होता है

 • 2. विटामिन 'D' की कमी से उत्पन्न रोग  (Diseases Treatment due to Deficiency of Vitamin D)  विटामिन D की पर्याप्त मात्रा   है, अन्यथा हमें विभिन्न प्रकार की शारीरिक व्याधियों का सामना करना पड़ता है.                                                                                                   जैसे अस्थि-विकृति की  गभीर बीमारी माना गया है। विटामिन D की उपस्थिति में फास्फोरसत और कैल्शियम खनिजों का सरलतापूर्वक शोषण होता है, जबकि इसकी अनुपस्थिति में 1 अवशोषण ठीक विधि से नहीं हो पाता और शरीर रोगी हो जाता है। विटामिन D की कमी से उत्पन्न रोगों में अस्थि विकृति या रिकेट्स और आस्टीमलेशिया या मृदुत्लास्थि अति प्रमुख माने गये हैं।                                                                                                                                                         इन रोगों का संक्षिर वर्णन और उपचार निम्नवत् प्रस्तुत है -                                                                                       (1) अस्थि-विकृति या रिकेट्स (Rickets) विटामिन D की कमी से उत्पन

शराब पीने वाले देखे किस शराब में कितना होता है एल्कोहल

                     प्रूफ स्प्रिट (Proof spirit) -  (i) शराबों की तीव्रता (ऐल्कोहॉल %) व्यक्त करने के लिए एक मानक की आवश्यकता होती है, क्योंकि शराब पर कर-निर्धारण उसके ऐल्कोहॉल % के आधार पर होता  है।                                                                                             पेय (Alcoholic beverages) - ये दो प्रकार के होते (i) 1)असुत(Distilled) - अनासुत ऐल्कोहॉलों को आसवित करके प्राप्त होते हैं। इनमें 35-50% एथिल ऐल्कोहॉल होता है।                                                                          कुछ शराबों में ऐल्कोहॉल % निम्नलिखित है-                ब्रान्डी (Brandy) अंगूर 40-50%                                       रम। (Rum) शीरा 40-55%                                           जिन (Gin) मक्का 35-40%                                                                                                            (ii) अनासुत (Undistilled) - इसमें 3-25% ऐल्कोहॉल होता है। करने इनके कुछ उदाहरण निम्नलिखित हैं।                                                             

CHIKUNGUNYA किस मच्छर से फैलता है ।और इसके क्या लक्षण है

                              (CHIKUNGUNYA) परिचय (Introduction) चिकनगुनिया विषाणु एक अर्बोविषाणु है जो अल्फा विषाणु (alpha virus) परिवार के अन्तर्गत सम्मिलित है। मानव में इसका प्रवेश एडिस (Aedes) मच्छर के काटने से होता है। यह विषाणु डेंगू रोग के समकक्ष लक्षण वाली बीमारी पैदा करता है। चिकनगुनिया रोग को अफ्रीकन भाषा से लिया गया है, इसका तात्पर्य है जो झुका दें।  एडिस (Aedes) मच्छर मानव शरीर में चिकनगुनिया विषाणु के प्रवेश करने के पश्चात 2 से 4 दिन के बाद इस रोग के लक्षण दर्शित होते हैं। इस रोग के लक्षणों में 39°C (102.2°F) तक का ज्वर हो जाता है। धड़, फिर हाथों और पैरों पर लाल रंग के चकत्ते बन जाते हैं। शरीर के सभी जोड़ों (joints) में असहनीय पीड़ा होती है। रोग के ठीक होने के पश्चात् भी लगभग 1 महीने तक शरीर में दर्द की शिकायत     बनी रहतीहै।                                                                 लक्षण(1)सर्दी के साथ तेज बुखार आना।                            2. सिर दर्द होना।                                                      3. मांसपेशियों में दर्द हेना।