ग्रेगर जॉन मेण्डल का जीवन-परिचय (Biography of Gregor Johann Mendel)
ग्रेगर जॉन मेण्डल (Gregor Johann Mendel) उत्कृष्ट आनुवंशिकी विद्वानों में अग्रणी थे। उनका जन्म 22 जुलाई सन् 1822 में ऑस्ट्रिया देश में हीनजेंडॉर्फ (Heinzendorf) नामक स्थान पर हुआ था. जहाँ पर इनके पिता ऐन्टॉन मेण्डल एक छोटे से फॉर्म के मालिक थे। जिम्नैज़ियम में सन् 1840 में उन्हें स्नातक की डिग्री से सम्मानित किया गया। उनकी किशोरावस्था बड़े दुखों, कठिनाइयो एवं गरीबी में व्यतीत हुई। अक्टूबर 1843 में चेकोस्लोवाकिया के मोराविया (Moravia) नगर के अन्तर्गत बुन (Brunn) शहर में संत ऑगस्टाइनवादी मठ में उन्हे प्रवेश दिलाया गया, जहाँ उन्हें नवदीक्षित व्यक्ति के रूप में ग्रेगर (Gregor) की पदवी प्रदान की गई। वहाँ उन्होंने निर्धारित कार्यों के अलावा प्रकृति-विज्ञान (natural science) में अधिक रुचि दिखाई। सन् 1846 में उन्होंने ब्रुन में ही कृषि-विज्ञान, फल संवर्धन एवं अंगूर की खेती की शिक्षा फिलोसॉफिकल ऐकेडमी में ली। सन् 1849 में उन्होंने एक प्रतिस्थानिक शिक्षक की तरह नेम (Znaim) में इम्पीरियल रॉयल जिम्नैज़ियम में काम किया। सन् 1851 से 1853 तक उन्होने वियेना विश्वविद्यालय में गणित एवं प्रकृति-विज्ञान का अध्ययन किया। सन् 1857 में उन्होंने जूलॉजिकल-बोटेनीकल सोसाइटी की सदस्यता ग्रहण की। सन् 1854 में वे बुन में स्थित भौतिक एवं प्रकृति-विज्ञान के हायर सेकेन्ड्री स्कूल में अध्यापक नियुक्त किये गये और 1868 तक इसी पद पर कार्यरत रहे एवं इसी बीच इन्होंने सन् 1856 में बगीचे की मटर (garden pea- Pisum sativum) की प्रजातियों में प्रसंकरण किया। सन् 1862 में मेण्डल बुन नेचुरल साइंस सोसाइटी के संस्थापक सदस्य बने। सन् 1866 में "वंशागति पर मेण्डल की खोज का वर्णन तथा उनकी परिकल्पनाएं" "(Annuas proceedings of the natural history society of brunn)" में प्रकाशित हुआ। इस शोध-पत्र में मेण्डल ने कुछ मूल आनुवंशिक नियम प्रतिपादित किये, लेकिन दुर्भाग्यवश इन्हें सन् 1900 तक कोई महत्व नहीं दिया गया। मेण्डल के कार्यों की पुनर्खाज (Rediscovery of Mender's work) सन् 1900 तक आनुवंशिक वैज्ञानिकों की दृष्टिप्र पर नहीं पड़ी। बाद में हॉलैण्ड के हामी ही चीज (Hugo de Vrien ईनीथेरा (Oenothera) पर ऑस्ट्रिया के प्याक (Teak) बहुत से फूलों वाले पौधों पर एवं जर्मनी के (Correns) जीनिया (xenia), मटर (peas) एवं मक्का (maize) पर अपने-अपने देशों में मण्डल जैसे प्रयोग करके उनके नियमों को गही सिद्ध किया। मेण्डल का वास्तविक पत्र दोबारा सन् 1901 में लोग (flora) के खंड 89 के भाग 364 में प्रकाशित हुआ। मेण्डल के प्रसंकरण प्रयोग हेतु संकरण प्रयोगों के लिए मीठी मटर पाइसम मैटाइयम (sweet pea Pisum sativum) चुना जिसके अनेक पौधे, अन्य जातियों के पौधो को साथ-साथ, उनके गिरजाघर के बगीचे में उगे हुए थे।उन्होंने मटर के ही पौधों का चयन इनके निम्नलिखित विशेष लक्षणों के कारण किया- (1).अतः इसके पौधे की आयु तीन से चार महीने की ही होती है। (2).आकार में भी मटर के पौधे छोटे होते हैं जिससे कि इन्हें सम्भालना आसान होता है। (3)इसमें फूल द्विलिंगी (bisexual) होते हैं तथा रचना में ये इस प्रकार बन्द होते हैं कि प्राकृतिक रूप से इनमें केवल स्व-परागष्ण (self-pollination) ही हो सकता है: पर-परागण (cross pollination) की कोई सम्भावना नहीं होती। बीजों की संख्या भी अधिक होती है तथा फलियों और बीज कम समय में ही पक जाते हैं। (4) मटर के पौधे का जीवन चक्र लघु अवधि में पूरा हो जाता है। अतः पीढ़ी के परिणाम जल्दी प्राप्त होते हैं।
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