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बच्चों पर प्रोटीन की कमी के लक्षण तथा प्रोटीन की कमी से होने वाली बीमारियां

             बच्चों पर प्रोटीन की कमी के कुप्रभाव


सन् 1935 में डॉ० सिसली विलियम्स ने अफ्रीकी देशों के बच्चों में क्वापियोरकोर रोग का पता लगाया तथा बताया कि यह रोग प्रोटीन की कमी के से होता है। यह रोग उन बच्चों को होता है जो पूर्वशाला आयु के होते हैं तथा दूध पीना छोड़  चुके होते हैं।                                                                                   क्वाशरकोर बीमारी के मुख्य लक्षण निम्नलिखित है                - (1) पेशियों की क्षति ।                                               (2) पूरे शरीर में सूजन रहना ।                                      (3) त्वचा सूखी और रुखी रहना ।                                  (4)प्यास लगना तथा भूख न लगना ।                               (6) विकास न होना ।                                                  (7) खून की कमी रहना ।                                             (8) चेहरे और शरीर की चमक चले जाना तथा बाल रुखे रहना ।                                                                                 इन सभी कारणों की वजह से बच्चे का विकास रुक जाता है। बच्चों की मांसपेशियों की वृद्धि भी रुक जाती है। त्वचा के नीचे की वसा समाप्त हो जाती है ।                                                                                                                             यह बीमारी हो जाने पर बच्चों को विटामिन ए और प्रोटीन तथा अन्य पोषक तत्व उचित मात्रा में दिया जाना चाहिए। बच्चों को दालें, दूद, शक्कर, अंडा, मांस का सूप आदि भी दिया जाना चाहिए। बच्चों को विटामिन ए और डी विशेष रूप से अलग से दिया जाना चाहिए। विकिसित हो रहे बच्चों तथा वयस्कों पर प्रोटीन की कमी का प्रभाव वयस्कों पर प्रोटीन की कमी का काफी बुरा प्रभाव पड़ता है। जब बच्चे विकसित हो रहे हो तो उन्हें प्रोटीन अधिक आवश्यक होती है। समुचित रूप से प्रोटीन न मिलने तथा इसकी कमी के कारण बच्चों का भार उचित रूप से नहीं बढ़ पाता है। प्रारम्भ में इस रोग का पता नहीं चलता है किन्तु यदि अधिक समय तक प्रोटीन की कमी आहार में चलती रहे तो बच्चा कम बढ़ता है तथा ढांचा छोटा हो जाता है। कमजोर व्यक्ति तथा रोगी बच्चे सामान्य व्यक्ति के समान प्रोटीन को पचाकर शोषित नहीं कर पाते हैं। बुखार, दस्त,  आदि के समय आहार की बहुत अधिक नाइट्रोजन का उपभोग होता है। कैलोरी की मात्रा यदि आहार में कम हो तब भी प्रोटीन का उपभोग कम हो पाता है। इस कारण शरीर की संपूर्ण शक्ति और ऊर्जा के लिए आवश्यक एंजाइम प्रोटीन और हारमोन्स आदि नही मिल पाते हैं। इस प्रकार परिश्रम करने वाले व्यक्तिगत तथा बढते किशरों को अधिक प्रोटीन न मिल पाने के कारण वे कमजोर पड़ने लगते हैं। उनकी रोग निरोधक क्षमता में कमी आ जाती है तथा वे जल्दी रोगग्रस्त होते हैं। उनके पेरों तथा श्रोणीगुहा वाले भाग में सूजन आने लगती है। प्रोटीन अस्थि मज्जा के विकास में काफी सहायक होती है। इसकी कमी से हड्डियां कमजोर पड़ जाती है। रोगी दांत के रोग से भी ग्रसित हो जाता है।  तथा 

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