विटामिन 'ए' (Vitamin'A') विटामिन A की खोज डॉ० मैकालम ने सन् 1907 से 1912 तक चूहों पर किये गये प्रयोगों के संदर्भ में की थी। उन्होंने ही सर्वप्रथम यह बताया कि मक्खन और अंडे की जर्दी में एक ऐसा विशिष्ट तत्व निहित होता है, जो कि हरी सब्जियों और वसा में बिल्कुल भी नहीं पाया जाता। यह पदार्थ शारीरिक वृद्धि और विकास हेतु सर्वथा अनिवार्य तथा लाभप्रद होता है। उन्होंने ही इसे विटामन A की संज्ञा प्रदान की। कालान्तर में नार्वे और न्यू फाउन्डलैन्ड के निवासियों के स्वास्थ्य तथा आहार का एक विशिष्ट अध्ययन करके यह ज्ञात किया गया कि समुद्र में पाई जाने वाली मछलियों के यकृत को खाने वाले व्यक्ति नेत्र रोगों से मुक्त थे, जबकि कुछ अन्य लोग नेत्र रोगों से पीड़ित थे। इससे यह निष्कर्ष प्राप्त किया गया कि मछली के यकृत में विटामिन A प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। कुछ अन्य परीक्षणों से भी ज्ञात हुआ कि नारंगी और गाजर के रंग वाले लगभग सभी भोज्य पदार्थों में एक विशिष्ट तत्व निहित होता है, जिसको कैरोटीन (Carotin) कहते हैं। यही कैरोटीन हमारे शरीर में प्रविष्ट होकर विटामिन A के रूप में परिवर्तित हो जाता है। यह भी दो प्रकार का होता है - विटामिन A₁ और विटामिन A2 । विटामिन A₁ समुद्री अथवा खारे पानी में पाई जाने वाली मछलियों के यकृत में तथा विटामिन A2 विशुद्ध और मीठे पानी की मछलियों के यकृत में पाया जाता है। प्राप्ति के स्रोत (Sources) विटामिन A की प्राप्ति वानस्पतिक और जान्तव दोनों वर्गों से होती है। सामान्यतः यह विटामिन हमे गाजर, शकरकन्द, फल, पत्तीदार हरी और पीली सब्जियां दूध और इससे निर्मित विभिन्न पदार्थ, मूंगफली और ताड़ का तेल, घी, मक्खन, दही, अंडे की जर्दी तथा मछली और मछली के यकृत आदि से प्राप्त होता है। इनमें मछली के यकृत के तैल में यह सर्वाधिक प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। विटामिन A काजू, अखरोट तथा बादाम में अत्यधिक अल्प मात्रा में पाया जाता है. जबकि अनाजों में भी कुछ मात्रा में उपस्थित रहता है। गाजर, टमाटर, पपीता, सीताफल, सन्तरा, पालक, रसबेरी, सेब, आम, केला आदि पदार्थ भी विटामिन A की प्राप्ति के प्रमुखतम स्रोत हैं। विभिन्न भोजन के अलावा चाय के दो चम्मच काड-लिवर आयल प्रतिदिन ग्रहण करने से इसकी प्रतिदिन की आवश्यकता पूरी हो जाती है। एक रोचक तथ्य यह भी है कि पौधों की पंक्तियों का रंग जितना अधिक गाढा होगा, उनमें उतना अधिक विटामिन A पाया जाता है गुण- यह एक पीला सा पदार्थ है, जो जल में घुलनशील वसा में घुलनशील और ताप और आग के प्रति स्थिर होता है। साधारण तापक्रम पर विटामिन A नष्ट नहीं होता, तथापि ओदजनीकरण की क्रिया में नष्ट हो जाता है। सूर्य की अल्ट्रा वायलेट किरणों के संपर्क के कारण श्री यह विटामिन नष्ट हो जाता है। चूंकि आक्सीकरण की क्रिया का इस विटामिन पर प्रतिकूल प्रचव पड़ता है, इसलिए इसको गहरे रंग की शीशे वाली बोतलों में रखा जाता है। कार्य तथा उपयोगिता (Functions and Utility) (1) यह नेत्र दृष्टि हेतु अनिवार्य और उपयोगी विटामिन है। यदि पर्याप्त मात्रा में विटामिन A ग्रहण किया जाये, तो व्यक्ति मन्दप्रकाश में भी भलीमांति दृष्टिपात कर सकता है, जबकि इसकी कमी से सामना गरी भी कदि
• 2. विटामिन 'D' की कमी से उत्पन्न रोग (Diseases Treatment due to Deficiency of Vitamin D) विटामिन D की पर्याप्त मात्रा है, अन्यथा हमें विभिन्न प्रकार की शारीरिक व्याधियों का सामना करना पड़ता है. जैसे अस्थि-विकृति की गभीर बीमारी माना गया है। विटामिन D की उपस्थिति में फास्फोरसत और कैल्शियम खनिजों का सरलतापूर्वक शोषण होता है, जबकि इसकी अनुपस्थिति में 1 अवशोषण ठीक विधि से नहीं हो पाता और शरीर रोगी हो जाता है। विटामिन D की कमी से उत्पन्न रोगों में अस्थि विकृति या रिकेट्स और आस्टीमलेशिया या मृदुत्लास्थि अति प्रमुख माने गये हैं। इन रोगों का संक्षिर वर्णन और उपचार निम्नवत् प्रस्तुत है - (1) अस्थि-विकृति या रिकेट्स (Rickets) विटामिन D की कमी से उत्पन
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