नायसिन अथवा निकोटीनिक एसिड (Nycin or Nictonic Acid) पहले इसको निकोटोनिक ऐसिड कहते थे, किन्तु सन् 1914 में फन्क ने जब पालिश किये गये चावलों से निकोटोनिक अम्ल को अलग किया तभी से इसको नायसिन की संज्ञा प्राप्त हुई। इस विटामिन की खोज गोल्डबर्जर तथा उनके सहयोगियों ने सन् 1915 में पैलेग्रा रोग के लिए उत्तरदायी कारणों की खोज के संदर्भ में की थी। सन् 1935 में रेहल बारबर्ग ने बताया कि निकोटोनिक ऐसिड वस्तुतः एक ऐसे ऐन्जाइम का अंश है, जो हाइड्रोजन के परिवहन में सहायता प्रदान करता है। यह विटामिन जल में घुलनशील होता है। इसका स्वाद कसैला, रंगहीन तथा आकार सुई के जैसा होता है। नायसिन विटामिन पर वायु, प्रकाश, ताप, क्षार और अम्ल का कोई भी प्रभाव नहीं पड़ता है अर्थात् यह नष्ट नहीं होता है 2. प्राप्ति के स्रोतहमारी आंतों में उपस्थित बैक्टीरिया कुछ मात्रा में निकोटोनिक ऐसिड का निर्माण करते हैं। इसके अतिरिक्त ट्रप्टोफेन एमीनो अम्ल में भी इसका निर्माण होता है। इस प्रकार के स्वतः निर्माण के अतिरिक्त अन्य खाद्य पदार्थों में भी यह विटामिन प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। मांस, गुर्दे, यकृत, मछली, अडे, फलियां, दालें, सभी प्रकार के अनाजों, मूंगफली, दूध, मक्खन, बादाम, पिस्ता, खमीर आदि विभिन्न खाद्य पदार्थों से यह विटामिन प्राप्त होता है। 3. नायसिन के कार्य (Functions) (i) नायसिन को। एन्जाइम के रूप में क्रियाशील रहता है। इस प्रकार यह आक्सीकरण की क्रिया में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। यह कार्बोज वसा तथा प्रोटीन के चपापचयन में वांछित सहायता करता है (2) यह डायबिटीज अथवा मधुमेह रोग में दिये जाने वाले इन्सुलिन के प्रभाव की वृद्धि में सहायता प्रदान करता है। (3) हमारे शरीर के पाचन संस्था संबंधी गंभीर विकारों में भी निकोटीनिक ऐसिड लामकारी कार्य करता है। (4) हमारे शरीर में लेड और थैलियम धातु संबंधी विष व्याप्त होने पर निकोटीनिक ऐसिड द्वारा सफलतम उपचार किया जाता है। (5) यह पैलेग्रा रोग के उपचार हेतु लाभकारी है, क्योंकि इसकी कमी के परिणामस्वरूप व्यक्ति पैलेग्रा ग्रसित हो जाता है। (6) हमारे शरीर के स्रायु कोषों और रक्तकोषों की सुचारू क्रियाशीलता तथा उत्तम स्वास्थ्य हेतु भी अत्यधिक महत्वपूर्ण और लाभप्रद सिद्ध होता है।
• 2. विटामिन 'D' की कमी से उत्पन्न रोग (Diseases Treatment due to Deficiency of Vitamin D) विटामिन D की पर्याप्त मात्रा है, अन्यथा हमें विभिन्न प्रकार की शारीरिक व्याधियों का सामना करना पड़ता है. जैसे अस्थि-विकृति की गभीर बीमारी माना गया है। विटामिन D की उपस्थिति में फास्फोरसत और कैल्शियम खनिजों का सरलतापूर्वक शोषण होता है, जबकि इसकी अनुपस्थिति में 1 अवशोषण ठीक विधि से नहीं हो पाता और शरीर रोगी हो जाता है। विटामिन D की कमी से उत्पन्न रोगों में अस्थि विकृति या रिकेट्स और आस्टीमलेशिया या मृदुत्लास्थि अति प्रमुख माने गये हैं। इन रोगों का संक्षिर वर्णन और उपचार निम्नवत् प्रस्तुत है - (1) अस्थि-विकृति या रिकेट्स (Rickets) विटामिन D की कमी से उत्पन
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